चारधाम यात्रा का महत्व:
सनातन धर्म में चारधाम यात्रा करने का अपना विशेष महत्व होता है, मान्यता है कि चारधाम यात्रा करने से व्यक्ति को "मोक्ष" की प्राप्ति होती है तथा वे खुद को और अपने पूर्वजों को पापों से मुक्त कर सकते हैं। हिन्दू धर्म में “मोक्ष” प्राप्त करना ही जीवन का उद्देश्य माना गया है। और ऐसा माना जाता है कि चार धाम की यात्रा आपको इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए करीब ले जाती है।
चारधाम यात्रा का हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। यह माना जाता रहा है कि प्रत्येक हिंदू को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार इस तीर्थ यात्रा पर जाना चाहिए।
यमुनोत्री धाम का महत्व: यमुनोत्री मंदिर उत्तराखंड के चार धामों में से एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और भक्तों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है। प्राचीन कथा के अनुसार, यमुना नदी भगवान सूर्य की पुत्री है और वह भगवान यम की जुड़वां बहन भी हैं, जो मृत्यु के देवता हैं। ऐसी मान्यता है कि यमुना जी ने अपने भाई यमराज से वादा किया था कि जो भी यमुना नदी में स्नान करेंगे, उनके सभी पाप धूल जाएंगे और उन्हें अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलेगी। इस कहानी से हिंदू लोगों का मानना है कि यमुनोत्री जी बड़ी दयालु हैं और उनके जल में डुबकी लगाने से मृत्यु के बाद यमलोक की यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती हैं।
गंगोत्री धाम का महत्व: उत्तराखंड के चारधाम में एक धाम "गंगोत्री धाम" भी है जिसका सनातन धर्म में विशेष महत्व है जिसका वर्णन पौराणिक कथाओं में किया गया है, इस धाम की महत्ता के बारे में जानने के लिए पौराणिक कथाओं के बारे में जानना बहुत जरूरी है। "गंगोत्री धाम" गंगा नदी का उद्गम स्थल और देवी गंगा का घर भी है। नदी को भागीरथी के नाम से जाना जाता है, लेकिन देवप्रयाग से आगे, इसे गंगा के नाम से जाना जाता है जब यह अलकनंदा से मिलती है। गंगोत्री तीर्थस्थल गौमुख में स्थित है, जो गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर है, पवित्र नदी का उद्गम स्थल है।गंगा माँ एक प्रतिष्ठित हिंदू देवी हैं जो गंगोत्री शहर से लगभग 18 किमी दूर, गोमुख की बर्फ से ढका गंगोत्री क्षेत्र से आई थीं, राजा भगीरथ के पापों को धोने के लिए धरती पर आई थीं। पौराणिक कथाओं में, गंगा नदी लोगों को उनके सभी पापों से शुद्ध करने के लिए एक पवित्र नदी मानी जाती है।
केदारनाथ धाम का महत्व: कहा जाता है कि चारधाम में केदारनाथ मंदिर, हिमालय की गोद में बना हुआ भव्य मंदिर है। इस मंदिर में शिव भगवान के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है। इसकी गिनती चार धामों की यात्रा में होती है। केदारनाथ मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों सभी कौरव भाइयों और अन्य बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थें, जिसके लिए वह भगवान शिव की खोज में हिमालय की ओर गए। पांडवों को अपनी ओर आता देख भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे। महाभारत में पांडवों ने भाईयों (अपने सगे-संबंधियों की हत्या) के पाप के लिए भगवान शिव से क्षमा मांगी। हालाँकि, शिव ने उन्हें तपस्या करने के लिए कहा। शिव ने चतुराई से खुद को एक बैल के रूप में छिपाया और केदारनाथ में जमीन में गायब हो गए।तब से केदारनाथ में शिव की उपासना की जाती है।
बद्रीनाथ धाम का महत्व: चारधाम में बद्रीनाथ धाम का भी विशेष महत्व है, कहते हैं कि केदारनाथ के दर्शन के बाद बद्रीनाथ जी के दर्शन करना बहुत ही अनिवार्य माना जाता है अन्यथ यात्रा अधूरी मानी जाती है। उत्तराखंड के चमोली जनपद के अलकनंदा नदी पर स्थित है बद्रीनाथ धाम। यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि है।जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं आना पड़ता। प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।पौराणिक कथा के अनुसर जब भगवान विष्णु योग साधना के लिए एक ऐसी जगह की तलाश कर रहे थे जो बहुत शांति और शुद्ध वातावरण से सुसज्जित हो और साधना के लिए अनुकूल हो जब भ्रमर करते हुए विष्णु जी उस जगह पे पहुंचे तो देखा की यहाँ तो पहले ही शिवभूमि थी तब विष्णु जी ने बाल रूप धारण किया और जोर जोर से रोने लगे उनके रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती और शिव जी वहां उपस्थित हुए और बालक से पूछा, तो बालक ने उनसे ध्यान और योग के लिए वह स्थान मांग लिया तबसे वह स्थान "बद्रीविशाल" के नाम से प्रसिद्ध है।
इस प्रकार चारधाम में चारो मंदिरों का विशेष महत्व है।